Metro In Dino Review – अनुराग बासु फिर एक बार Metro… In Dino में अलग अलग लोगों का एक भावनात्मक सफर लेकर आये हैं, जो 18 साल पहले आई Life in a… Metro की यादें ताज़ा कर देगा। लेकिन ये फिल्म उस फील केवल एक सीक्वल नहीं है, बल्कि 18 साल बाद आज के दौर की कहानियों और रिश्तों की एक झलक खूबसूरत फिल्म है। इसमें कमिटमेंट या रिश्ते निभाने की हिचकिचाहट, Modern Love Dilemmas (आधुनिक ज़माने में प्रेम की उलझनें), रिश्तों में होती थकान और भावनात्मक दूरी जैसे मुद्दों को बेहद संवेदनशीलता से दिखाया गया है।
फिल्म की सबसे बड़ी ताकत हैं इसके महिला किरदार। चाहे वो कोंकणा सेन शर्मा जैसी जुझारू पत्नी हों, फातिमा सना शेख जैसी उलझनों में घिरी पत्रकार हो या सारा अली खान जैसी एक कन्फ्यूज्ड कॉर्पोरेट प्रोफेशनल, इसमें हर महिला अपने रिश्ते में उलझती और उसे सुलझाती दिखती है। इस बार Metro… In Dino के पुरुष किरदार बैकफुट पर हैं, और महिलाएं अपनी शर्तों पर प्यार और जीवन को समझने की कोशिश करती हैं।
पंकज त्रिपाठी और कोंकणा की जोड़ी अपने एक पुराने रिश्ते में थकान का सामना कर रही है, जिसे मज़ाक और गंभीरता के बीच संतुलन बनाकर दर्शाया गया है। वहीं अली फज़ल और फातिमा की कहानी एक मॉडर्न मैरिज की जटिलताओं को दर्शाती है, जिसमें इमोशनल गैप, कम्युनिकेशन की कमी और करियर की प्राथमिकताएं रिश्ते की नींव को हिला देती हैं।

फिल्म में न सिर्फ चार कपल्स की कहानियाँ हैं, बल्कि LGBTQ+ प्रतिनिधित्व, बुज़ुर्गों का दोबारा प्यार पाना और जेनरेशन गैप जैसी थीम्स को भी बेहद संवेदनशीलता से छूआ गया है। नाना-नानी की उम्र में प्यार ढूंढते अनुपम खेर और नीना गुप्ता के बीच की बातचीत और सीन्स आपको हंसने पर मजबूर कर देंगे।
पिछली मेट्रो की तरह, संगीत इस फिल्म का भी बहुत खास हिस्सा है। प्रीतम के गाने, खासतौर पर Zamana Lage और Dil Ka Kya, कहानी में बेहद खूबसूरत लगते हैं। हालांकि कई दर्शकों को बीच-बीच में गानों का आना खल सकता है, लेकिन अनुराग बासु के सिनेमाई स्टाइल में म्यूज़िक हमेशा से एक किरदार रहा है।
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Metro In Dino Review की खूबी इसके आम ज़िन्दगी को दिखाने वाले किरदार और शहरी कहानियों को कहने का इसका अंदाज़ है, जो हम सब कहीं न कहीं जी चुके हैं। हां, कुछ कहानियाँ थोड़ी दोहराई हुई लग सकती हैं, और फिल्म थोड़ी लंबी है, पर इसकी सादगी और सच्चाई दिल छूती है।