भारत जब electric vehicle revolution की ओर तेज़ी से बढ़ रहा है, तभी इस ‘ग्रीन ड्राइव’ पर चीन की नाराज़गी ने नई बहस छेड़ दी है। जहां भारत अपनी EV manufacturing ecosystem को मज़बूत करने के लिए सब्सिडी और Production Linked Incentive (PLI) जैसी स्कीम्स चला रहा है, वहीं चीन को लगता है कि ये नीतियां उसके प्रोडक्ट्स के खिलाफ भेदभाव कर रही हैं। सवाल ये है कि क्या भारत की Make in India EV push वैश्विक व्यापार नियमों से टकरा रही है या फिर चीन अपने घटते एक्सपोर्ट के दबाव में शिकायत कर रहा है? आइये जानते हैं-
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WTO में चीन की शिकायत का असल मुद्दा क्या है?
हाल ही में चीन ने भारत की EV सब्सिडी को लेकर World Trade Organization (WTO) में औपचारिक शिकायत दर्ज कराई है। बीजिंग का दावा है कि भारत की तीन प्रमुख योजनाएं वैश्विक व्यापार नियमों का उल्लंघन करती हैं –
- National Programme on Advanced Chemistry Cell (ACC) Battery Storage (₹18,100 करोड़): इस स्कीम के तहत देश में उन्नत बैटरी तकनीक को विकसित करने और घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहित करने पर ज़ोर दिया गया है।
- PLI Scheme for Automobile & Auto Components (₹25,938 करोड़): इसका उद्देश्य भारत में ऑटोमोबाइल और उससे जुड़े कंपोनेंट्स के निर्माण को बढ़ावा देना और विदेशी आयात पर निर्भरता घटाना है।
- EV Passenger Car Manufacturing Scheme: यह योजना देश में इलेक्ट्रिक पैसेंजर कारों के निर्माण को बढ़ाने और ग्लोबल EV मेकर्स को भारत में निवेश के लिए आकर्षित करने पर केंद्रित है।
इन सभी नीतियों का उद्देश्य स्थानीय उद्योग को मज़बूत करना और आयात पर निर्भरता घटाना है। चीन का आरोप है कि भारत की ये EV subsidies, import substitution policies हैं, जो WTO trade rules का उल्लंघन करती हैं और विदेशी, ख़ासकर चीनी प्रोडक्ट्स को प्रतिस्पर्धा से बाहर करती हैं।
चीन की चिंता: ओवरकैपेसिटी और घटती विदेशी मार्केट्स
असल में, चीन की चिंता कहीं गहरी है। उसका EV export market यूरोप में झटका खा रहा है, जहां यूरोपीय संघ (EU) ने चीनी इलेक्ट्रिक वाहनों पर 27 प्रतिशत का टैरिफ लगा दिया है। घरेलू मार्केट में भी कीमतों में जंग और ओवरकैपेसिटी की वजह से उसकी कंपनियां नए बाज़ार ढूंढ रही हैं। ऐसे में भारत इसमें अगला बड़ा टारगेट दिख रहा है और भारत का Atmanirbhar Bharat EV plan चीन की राह में बाधा बनता दिख रहा है।
भारत की EV नीतियां देश में domestic EV manufacturing को बढ़ावा देने के लिए हैं, लेकिन इनका असर चीन जैसे देशों के एक्सपोर्ट पर पड़ना तय है। आने वाले महीनों में WTO की प्रक्रिया तय करेगी कि यह मामला सिर्फ कागज़ों तक सीमित रहता है या फिर यह India-China EV trade relations को नया मोड़ देता है।
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